जय सियाराम दोस्तो
ASTROLOGY THE FATHER OF SCINCE मे आप सभी का हार्दिक स्वागत हे।
आज हम बात करेंगे ग्रहो के बारे मे और ज्योतिष की किस सूत्र उत्पति हुई उसके बारे मे ग्रह क्या हे और वह केसे हमारे ऊपर प्रभाव डालते हे । तो आइए जानते हे । हमारे शास्त्रोमे एक सूत्र यह हे की ''यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे'' याने के जो हमारे पिंड मे हे वही ब्रह्मांड मे हे या यू कहे की जो ब्रह्मांड मे वह सारा हमारे पिंड मे हे। याने के शरीर मे हे। इसके बाहर कुछ नहीं जो इस काया मे वही बाहर हे और जो बाहर हे वही हमारे अंदर हे संसार की अब तक की सारी वैज्ञाननिक शोध ईसी पर निर्भर हे सारे शोध कर्य ब्रह्मांड और हमारे शरीर के ऊपर से ही की गयी हे।आज तक बना हुआ हर मशीन इसी सूत्र आधार पर की गयी खोज हे ।अब हम बात करेंगे ग्रहो के बारे मे ।
सूर्य,चन्द्र,मंगल,बुध,बृहस्पति,शुक्र ,शनि और राहू और केतू छाया ग्रह हे किन्तु उसे भी इतना ही स्थान दिया गया हे ।क्योकि यह भी ग्रहो के जितना ही प्रभाव देते हे इसलिए इन्हे भी ग्रह माना गया हे।
सूर्य; सूर्य को ग्रहो का राजा कहा गया हे ,सूर्य को पिता, नेत्र,आत्मा,राजा,कहा गया हे । इन सभी को सूर्य का कारक कहा गया हे।जन्मकुंडलि मे सूर्य के अछे या बुरे रहने पर इन सभी चीजो पर इफैक्ट करता हे।अब बात वह करते हे जो आज तक आप को किसिने नहीं बताई होगी की शास्त्रो मे आखिर सूर्य को ही क्यू राजा कहा गया क्यू पिता कहा गया और क्यू नेत्र कहा गया। सूर्य से ही पूरा ब्रह्मांड प्रकाशमान होता हे सूर्य उदय होने पर ही हमे नेत्र ज्योति द्वारा दिखाई देंना चालू होता हे सूर्य की रोशनी से ही सब कुछ नजर आता हे।इसलिए सूर्य को नेत्र कहा गया हे। हमारे ब्रह्मांड मे यदि सूर्य ना हो तो ब्रह्मांड सृष्टि नहीं चल सकती पूरा ब्रह्मांड पूरी सृष्टि सूर्य पर आधारित हे हमारे शरीर मे जेसे आत्मा ना होने पर यह देह नश्वर हो जाता हे यह देह का कुछ भी महत्व नहीं रेहता आत्मा के ना होने पर इसलिए सूर्य को आत्मा कहा गया हे।सूर्य की किरणों से हमारा भरण पोषण होता हे पूरी सृष्टि का भरण पोषण सूर्य पर निर्भर हे और हमारे घर मे हमारा भरण पोषण पिता से होता हे इसलिए सूर्य को पिता कहा गया हे।
पाठक गनो को बहुत कम शब्दो मे समजाने की कोसिस की गयी हे क्यूकी विस्तार से बताने पर सिर्फ सूर्य पर पूरी बूक लिखी जा सकती हे इसलिए आप सभी को जल्दी समज मे आ जाय एसे शब्दो द्वारा वर्णन करने की कोशिस की गयी हे।
अब ज्योतिष शास्त्र मे सूर्य के विषय मे जिन जिन चीजों का कारक कहा गया वह बताते हे
सूर्य:=पुरुष जाती,रक्त वर्ण,स्थिर,पितप्रकृति,और पूर्वा दिशा का अधिस्ठाता ग्रह हे।
सूर्य आत्मा,आरोग्य,स्वभाव,राज्य,और देवालय का सूचक हे,
देवता-अग्नि, ऋतु-ग्रीष्म, हे।
सूर्य से शारीरिक रोग,मंदाग्नि,मानसिक रोग,नेत्र विकार,अपमान,कलह आदि के संबंध मे विचार होता हे।
करोडरजजु,स्नायु,नेत्र,पर इसका प्रभाव रेहता हे। और इसीके द्वारा जातक के पिता और स्वस्थ्य के संबंध मे विचार होता हे। और सूर्य को पाप ग्रह कहा जाता हे। सूर्य के अछे या बुरे रहने पर सूर्य इनामे से सभी को या किसी एक दो चीजों पर पूरा कुंडली देखने पर पता चलता हे की ज्यादा किन चीज पर प्रभाव डालेगा परंतु आछ या बुरा या बलहीन रहने पर ऊपर बताया गए चीजों पर अपनी दशा महादशा मे अपनी ऋतुमे या गोचर मे वह स्थिति आने पर फल करता हे।
ASTROLOGY THE FATHER OF SCINCE मे आप सभी का हार्दिक स्वागत हे।
आज हम बात करेंगे ग्रहो के बारे मे और ज्योतिष की किस सूत्र उत्पति हुई उसके बारे मे ग्रह क्या हे और वह केसे हमारे ऊपर प्रभाव डालते हे । तो आइए जानते हे । हमारे शास्त्रोमे एक सूत्र यह हे की ''यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे'' याने के जो हमारे पिंड मे हे वही ब्रह्मांड मे हे या यू कहे की जो ब्रह्मांड मे वह सारा हमारे पिंड मे हे। याने के शरीर मे हे। इसके बाहर कुछ नहीं जो इस काया मे वही बाहर हे और जो बाहर हे वही हमारे अंदर हे संसार की अब तक की सारी वैज्ञाननिक शोध ईसी पर निर्भर हे सारे शोध कर्य ब्रह्मांड और हमारे शरीर के ऊपर से ही की गयी हे।आज तक बना हुआ हर मशीन इसी सूत्र आधार पर की गयी खोज हे ।अब हम बात करेंगे ग्रहो के बारे मे ।
सूर्य,चन्द्र,मंगल,बुध,बृहस्पति,शुक्र ,शनि और राहू और केतू छाया ग्रह हे किन्तु उसे भी इतना ही स्थान दिया गया हे ।क्योकि यह भी ग्रहो के जितना ही प्रभाव देते हे इसलिए इन्हे भी ग्रह माना गया हे।
सूर्य; सूर्य को ग्रहो का राजा कहा गया हे ,सूर्य को पिता, नेत्र,आत्मा,राजा,कहा गया हे । इन सभी को सूर्य का कारक कहा गया हे।जन्मकुंडलि मे सूर्य के अछे या बुरे रहने पर इन सभी चीजो पर इफैक्ट करता हे।अब बात वह करते हे जो आज तक आप को किसिने नहीं बताई होगी की शास्त्रो मे आखिर सूर्य को ही क्यू राजा कहा गया क्यू पिता कहा गया और क्यू नेत्र कहा गया। सूर्य से ही पूरा ब्रह्मांड प्रकाशमान होता हे सूर्य उदय होने पर ही हमे नेत्र ज्योति द्वारा दिखाई देंना चालू होता हे सूर्य की रोशनी से ही सब कुछ नजर आता हे।इसलिए सूर्य को नेत्र कहा गया हे। हमारे ब्रह्मांड मे यदि सूर्य ना हो तो ब्रह्मांड सृष्टि नहीं चल सकती पूरा ब्रह्मांड पूरी सृष्टि सूर्य पर आधारित हे हमारे शरीर मे जेसे आत्मा ना होने पर यह देह नश्वर हो जाता हे यह देह का कुछ भी महत्व नहीं रेहता आत्मा के ना होने पर इसलिए सूर्य को आत्मा कहा गया हे।सूर्य की किरणों से हमारा भरण पोषण होता हे पूरी सृष्टि का भरण पोषण सूर्य पर निर्भर हे और हमारे घर मे हमारा भरण पोषण पिता से होता हे इसलिए सूर्य को पिता कहा गया हे।
पाठक गनो को बहुत कम शब्दो मे समजाने की कोसिस की गयी हे क्यूकी विस्तार से बताने पर सिर्फ सूर्य पर पूरी बूक लिखी जा सकती हे इसलिए आप सभी को जल्दी समज मे आ जाय एसे शब्दो द्वारा वर्णन करने की कोशिस की गयी हे।
अब ज्योतिष शास्त्र मे सूर्य के विषय मे जिन जिन चीजों का कारक कहा गया वह बताते हे
सूर्य:=पुरुष जाती,रक्त वर्ण,स्थिर,पितप्रकृति,और पूर्वा दिशा का अधिस्ठाता ग्रह हे।
सूर्य आत्मा,आरोग्य,स्वभाव,राज्य,और देवालय का सूचक हे,
देवता-अग्नि, ऋतु-ग्रीष्म, हे।
सूर्य से शारीरिक रोग,मंदाग्नि,मानसिक रोग,नेत्र विकार,अपमान,कलह आदि के संबंध मे विचार होता हे।
करोडरजजु,स्नायु,नेत्र,पर इसका प्रभाव रेहता हे। और इसीके द्वारा जातक के पिता और स्वस्थ्य के संबंध मे विचार होता हे। और सूर्य को पाप ग्रह कहा जाता हे। सूर्य के अछे या बुरे रहने पर सूर्य इनामे से सभी को या किसी एक दो चीजों पर पूरा कुंडली देखने पर पता चलता हे की ज्यादा किन चीज पर प्रभाव डालेगा परंतु आछ या बुरा या बलहीन रहने पर ऊपर बताया गए चीजों पर अपनी दशा महादशा मे अपनी ऋतुमे या गोचर मे वह स्थिति आने पर फल करता हे।
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