Friday, May 8, 2020

प्रश्न ज्योतिष

प्रश्न ज्योतिष
भविष्य फल जान ने के सबसे श्रेष्ठ विधि प्रश्न ज्योतिष । बृहत जातक में इसी विधि को नष्ट जन्मांग और नष्ट जातक कहते है । जीन लोगो को अपने जन्म के बारे में कुछ भी ज्ञात नहीं है। उनको नष्ट जातक कहते है। अब बात यह आती है कि भविष्य तो उनका भी ही जिनकी जन्म कुंडली नहीं है । अब जिनकी जन्म कुंडली नहीं है । उनके जीवन के प्रश्न का समाधान करने के लिए प्रश्न ज्योतिष है यह ऐसी अनुपम विधि जिसके द्वारा एक दैवज्ञ ज्योतिष यह तक पता लगा सकता है कि सामने वाले के मन में क्या बात है। खैर में यहां उस विधि चर्चा नहीं करूंगा उस विधि के बारे मैं हम फिर कभी जानेंगे अभी हम बात करते है कि सबसे पहले यह जान ले की प्रश्न करने का विधान क्या है। प्रश्न करने के लिए जो भी जाए वह पहले यह जान लें यह कोई खेल नहीं कभी भी खेल खेल में प्रश्न ना करे अन्यथा ग्रह उनके साथ भी खेल कर सकते है क्योंकि खेल खेल में प्रश्न करने अर्थ है कि उन परमेश्वर परब्रह्म जिसने यह विद्या बताई है उन परमेश्वर उन तपस्वी ऋषि मुनियों उपहास करना। अत इसका भयंकर परिणाम मिल सकता है।क्यों की यह विद्या उन शुद्ध चित वाले को लिए है जो उन परमेश्वर तथा हमारे शास्त्र तथा महर्षि द्वारा विद्या पर पूरा विश्वास हो। क्योंकि शास्त्र कहता है कि मंत्र,ज्योतिष, गुरु, ब्राह्मण तथा देवता उतना ही फल देते हैं जितना और जैसा आप का विश्वास होता है।
1) प्रश्न ऐसा ही करे जो आपके दिमाग में बार बार आता हो तथा कई दिनों से आपके मन में हो तथा अभी तक आपने किसी को बताया नहीं हो क्योंकि मन की बात उन्ही लोगो को बतानी चाहिए जिनके अंदर दैवज्ञ के सारे लक्षण हो अन्यथा जैसे तैसे किसी को भी अपनी मन  की बात नहीं बतानी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से आप की मुश्किल बढ़ सकती है । कहीं कहीं तो यह भी कहा है कि जब तक अपना लक्ष्य प्राप्त ना हो तब तक दैवज्ञ पुरूषों के अलावा किसी को ना बतावे।2) अब दूसरी बात करते है। प्रश्न करने के लिए जब भी जाए तो अपने साथ कुछ उपहार अवश्य ही ले जाए और साथ में यथा शक्ति दक्षिणा भी ले जाए। शास्त्र में तो नरियेल ,वस्त्र आदि बहुत कुछ ले जाने की बात कही है परन्तु अभी के समय के अनुसार जो भी यथा शक्ति संभव हो वह ले के जाय।3) एक समय में एक ही प्रश्न करे ।
यह तो थे प्रश्न करने के नियम अब हम सर्व जन सुलभ प्रश्न ज्योतिष का कुछ शब्दों में वर्णन करते है । की यह केसे काम करता है । जैसे बच्चे का जन्म नव महीना मा के गर्भ में रहता है और जब वह बाहर की सृष्टि में आता है ।वैसे ही प्रश्न दीर्घ काल तक मानसिक गर्भ में रहता है।और जब वह प्रश्न मुख द्वारा जन्म ले कर ध्वनि रूप में बाहर प्रकट होता है तो प्रश्न कुंडली बनती है।जब भी प्रश्न करता आवे और प्रश्न करे तो उसी समय और स्थान के हिसाब से जन्म कुंडली तरह प्रश्न कुंडली का निर्माण करे जैसे जन्म कुंडली में जन्म लग्न होता है वैसे ही प्रश्न कुंडली में प्रश्न लग्न जन्म कुंडली में जन्म लग्न जातक शरीर है वैसे ही प्रश्न लग्न प्रश्न और प्रश्न करता शरीर समझें यदि जातक कहीं दूर है और ज्योतिष दूर है तब जहा से प्रश्न करता बोल रहा होता है उसी स्थान और समय के हिसाब से ही प्रश्न कुंडली का निर्माण करे। अन्यथा भविष्य फल गलत हो जायेगा।
प्रश्न कुंडली में जो लग्न होगा प्रश्न करता उसी वर्ण का होगा अर्थात प्रश्न लग्न जो राशि होगी उसी के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्र होगा । यदि वह प्रश्न लग्न की राशि में कोई ग्रह बैठा हो तो उसके अनुसार ग्रह का बलाबल देखके वर्ण जानना चाहिए ।
चन्द्र मा जिस राशि भाव में यथा ग्रह के साथ हो उसी विचार और प्रश्न को लेकर आया समझें।
चन्द्रमा मनसो जातः।
अर्थात चंद्रमा मन हो सो मन जैसा हो वैसा ही प्रश्न हो। प्रश्न कुंडली में प्रश्न लग्न राशि की दिशा चन्द्र मा की स्थिति सूर्य की स्थिति तथा नवांश का बल दशा महादशा आदि आदि बहुत कुछ देखा जाता है उसके बाद में सही जवाब मिल सकता है।जो एक श्रेष्ठ ज्योतिष ही दे सकता है। और उसी को दैवज्ञ कहते इतना जटिल गणित प्रकिया तथा पूर्ण फलादेश करने का ज्ञान बहुत ही गूढ़ व गहरा होता है । फिर भी आज कल बहुत से लोग जो ज्योतिष के बारे में हमारे महान वैज्ञानिक ऋषिओ के बारे में कुछ नहीं जानते वैसे अज्ञानी लोग ज्योतिष को अंधविश्वास कह देते है। कितने शर्म की बात है जो अपने विज्ञान को जानते नहीं और। जो इसी विज्ञान से जन्मा आज का विज्ञान को मानते हो । जिनको नहीं पता कि astrology The Father of science
वाचक मित्रो को ज्योतिषाचार्य विशाल देवमुरारी का सादर प्रणाम।
अस्तु।     ।। जय सियाराम।।

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